Tuesday, February 1, 2011

तालीम व तरबियत के लिए दूसरी बशारत

            हज़रत ख़्वाजा हसन अता रहमतुल्लाहि तआला अलैह के विसाल फरमाने के बाद हज़रत ख़्वाजा दाना साहब के वालिदे गिरामी हज़रत हज़रत ख़्वाजा सैयद बादशाह पर्दहपोश ने अपने दुसरे हर-दिल-अज़ीज़ शागिर्द हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद को ख्वाब में ये हुक्म दिया के वो मेरे साहब ज़ादे ख़्वाजा दाना को मज़ीद तालीम व तरबियत दें कि अभी उन में कुछ कमी है, चुनान्चे पीर व मुर्शिद का हुक्म मिलते ही हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद हज़रत ख़्वाजा दाना की तलाश में निकल पड़े. तलाश करते करते ख़ुरासान के जंगल में पहोंचे तो क्या देखते हैं कि हज़रत ख़्वाजा दाना हिरनों के टोले में जलवा अफरोज़ हैं. हरनों ने हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद को देखा तो भागने लगे. हज़रत ख़्वाजा दाना भी चल पड़े, ये सिलसिला तीन दिन तक चलता रहा ओर हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद की हज़रत ख़्वाजा दाना साहब से रू-ब-रू मुलाक़ात न हो सकी. आख़िर एक दिन हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद ने इन्तेहाई आजिज़ी ओर इन्केसारी ओर मिन्नत व समाजत के बाद उनका रास्ता रोक कर फरमाया! साहब ज़ादे! में आपके वालिदे गिरामी का मुरीद हूँ, उनहोंने ख्वाब में तशरीफ़ लाकर मुझे आप की तालीम व तरबियत के लिए हुक्म दिया है ओर आप हैं कि मुझ से दूर-दूर भाग रहे हैं. चुनान्चे इतना सुनना था कि हज़रत ख़्वाजा दाना फ़ौरन रुक गए ओर उसी जगह झोंपड़ी में दोनों रहने लगे. हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद ने बड़ी मेहनत व जांफिशानी के साथ हज़रत को मुकम्मल छे(६) साल तक शरीअत, तरीक़त, हकीकत, ओर मारिफत, की मुकम्मल तालीम से आरास्ता फरमाने के बाद हज़रत ख़्वाजा दाना की इजाज़त से अपने वतन लौट आये.

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