Thursday, February 3, 2011

काया पलट

           हज़रत ख़्वाजा दाना साहब हसबे मअमूल इबादते खुदावंदी में मशगूल थे कि अचानक एक दिन जंगल में मजज़ूब बाबा चोपाल से मुलाक़ात हो गई. यही मिलाप आपकी ज़िन्दगी में काय पलट का बाईस हुआ, आपने हज़रत बाबा चोपाल को देखकर भागना चाहा तो उन्हों ने फरमाया: इन्सान से भागना चेह मअना?ये सुन कर हज़रत ख्वाजा दाना वहीं ठहेर गए.बाबा चोपाल ने हज़रत ख़्वाजा दाना से मुख़ातिब होकर फरमाया: साहब ज़ादे! मैं यहाँ इस लिए आया हूँ कि तुम्हें जंगल की ज़िन्दगी से निकालकर इंसानों की तरफ ले चलूं.इन्सान को अल्लाह तआला ने इन्सानों के काम आने के लिए दुनिया में भेजा है.जानवरों में रेहकर ज़िन्दगी बसर करने के लिए नहीं भेजा है, आपके वालिदे गिरामी हज़रत ख़्वाजा सैयद बादशाह परदहपोश इन्सानों ही में रेहते थे ओर इन्सानों की हर दीनी व दुनियावी ज़रूरतों को पूरा करते थे अब अगर तुम जंगल में रहोगे तो क्या मख्लूक़े ख़ुदा की ज़रूरतों को पूरा कर सकोगे? दुर्वेश बाबा चोपाल की बातों ने हज़रत ख़्वाजा दाना के दिल व दिमाग़ में हलचल पैदा कर दी.अचानक दूसरी जानिब से एक और दुरवेश हज़रत बाबा मजज़ूब तुर्किस्तानी नमूदार हुए.आते ही उन्हों ने हज़रत ख़्वाजा दाना साहब को मुख़ातब कीया. अरे दाना! तुम अभी तक इस जंगल में मौजूद हो? हज़रते ख़्वाजा दाना हैरान हो गए कि यह कौन है ओर इनको मेरा नाम किस तरह मअलूम हो गया? इसके बअद तीनों हज़रात एक दुसरे से गले मिले.हज़रत बाबा चोपाल अलैहिर्रेहमा ने अपनी बगल से तीन गरम गरम रोटियां निकालीं ओर हज़रत ख़्वाजा दाना ओर दुरवेश बाबा मजज़ूब तुर्किस्तानी के सामने रख दीं.फिर इन में एक रोटी उठा कर उसके तीन टुकड़े किये.एक खुद खाया ओर एक हज़रत ख़्वाजा दाना को दिया ओर एक हज़रत मजज़ूब तुर्किस्तानी को पेश कीया हज़रत बाबा चोपाल का दिया हुआ टुकड़ा खाने के बअद आपकी ज़िन्दगी में एक नुमायां तब्दीली वाक़ेअ हा गई.आपने फ़ौरन जंगल को ख़ैर आबाद कीया ओर शहर की जानिब रवाना हो गए. 

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