हज़रत ख़्वाजा हसन अता रहमतुल्लाहि तआला अलैह अपने पीर व मुर्शिद के शेह्ज़ादे हज़रत ख़्वाजा दाना साहब को १२ साल की उम्र तक मुकम्मल तअलीम व तरबियत ओर तरीक-ए ख़्वाजगाने नक्शबंद ओर इल्मे शरीअत व तरीक़त के रुमूज़ से वाकिफ फरमा दिया ओर जब वफात का वक़्त क़रीब आ गया तो जंगल में से एक हाथ लम्बी लकड़ी लाये जो असा का काम अंजाम दे सके.
ओर ख़िरका-ए मुबारकह दोनों हज़रत ख़्वाजा दाना आलैहिर्रेहमा को अता फरमाया ओर ख़िलाफत व इजाज़त मरहमत फरमाने के बअद इन अलफ़ाज़ के साथ नसीहत फरमाई कि:
अय मेरे फ़रज़न्दे अर्जुमंद! अय मेरे प्यारे अज़ीज़ कामिल बुज़ुर्ग के सच्चे ओर कामिल ख़लीफा में जो नसीहत कर रहा हूँ उसे ग़ौर से सुनना ओर इसको याद रखना.ये दुनिया मक्र व फरेब ओर फितना व फसाद कि जगह है, यह एक मुसाफिर ख़ाना है, यहाँ जो भी आता है उसे एक-न-एक दिन जाना है,न कोई रहा है न रहेगा, ये बड़ी बेवफा है, इसने किसी के साथ वफ़ा नहीं की. अय मेरे दाना बेटे! मौत का मज़ा हर ज़ीरूह को चखना है,मौत से किसी को भी मफर नहीं है,मौत का तल्ख़ पानी हर एक को पीना है, इससे बचकर कोई भी कहीं भी जा नहीं सकता है, इसलिए तुम को चाहिए कि जब मौत का वक़्त आ जाये तो अपने को परेशानी में मुब्तला न करना ओर न ही अपने दिल को हैरान ओर परेशान करना इतना फरमाकर हज़रत ख़्वाजा हसन अता रहमतुल्लाहि तआला अलैह की हालत अचानक खराब हो गयी. आपने फ़ौरन दो रकअत नमाज़ अदा की ओर सजदे की हालत में अपने ख़ालिक़े हक़ीक़ी से जा मिले. इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलयहि राजिऊन .
हज़रत हज़रत ख़्वाजा दाना रहमतुल्लाहि तआला अलैह के पीर व मुर्शिद का इन्तेक़ाल आपकी ज़िन्दगी का पहला वाक़िआ था. वालिदे गिरामी ओर वालिदा-ए मोहतरमह का साया-ए शफ़क़त तो शीर-ख़्वार्गी के दिनों ही में उठ चूका था. आप अकेले ओर जंगल का माहोल इसलिए सख्त परेशान हो गए कि क्या करें.ओर क्या न करें, रंजीदह खातिर बैठे सोच रहे थे कि अब पीरो मुर्शिद की तजहीज़ व तकफीन ओर नमाज़े जनाज़ा कैसे होगी. कि अचानक क्या देखते हैं कि क़िबले की जानिब से एक नूरानी क़ाफिला चला आ रहा है. आप देख कर बहुत खुश हुए ओर अपने परवरदिगारे आलम का शुक्र अदा कीया ओर समझ गए कि ये नूरानी जमाअत फरिश्तों की है, इस मुक़द्दस जमाअत ने हज़रत ख़्वाजा सैयद हसन अता अलैहिर्रेहमा की लाश मुबारका को तालाब के साफ़ व शफ्फाफ पानी से ग़ुस्ल दिया कफ़न पहेनाया ओर नमाज़े जनाज़ा अदा की ओर हज़रत ख़्वाजा हसन अता को दफ्न करने के बअद हज़रत ख़्वाजा दाना को तसल्ली व तशफ्फी देकर ये मुक़द्दस जमाअत नज़रों से ग़ाइब हो गई. एक रिवायत ये है कि फ़रिश्ते हज़रत की लाश को अपने साथ लेकर चले गए.
मोहतरम क़ारिईन! आप ग़ौर फरमाएं! जिनका पीर इतना कामिल ओर मर्तबे वाला हो कि उसे फ़रिश्ते ग़ुस्ल व कफ़न दें ओर नमाज़े जनाज़ा अदा करें तो ऐसे पीर रोशन ज़मीर बुज़ुर्ग के मुरीद का आलम क्या होगा?
No comments:
Post a Comment