Sunday, February 13, 2011

Woh Sher Jo Hazrat Khwaja Dana Rehmatullah-Alayh Ne Surat Walon Ke Liye Kahe Hain


Buland Darwaza

અઝ઼મતે મુસ્તફા(Azmate Mustafa)

मुस्तफा जाने रहमत(तज़मीन)(Mustafa Jaane Rehmat)

                                मुस्तफा जाने रहमत

अख्त़रे   बुर्जे रीफअत  पे लाखों सलाम  -@- आफ़ताबे रिसालत पे लाखों      सलाम
मुजतबा शाने क़ुदरत पे  लाखों सलाम  -@- मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम
                                शमए बज़्मे हिदायत पे लाखों सलाम

जब हुआ     ज़वफ़िगन  दीनो दुनिया चाँद -@- आया ख़ल्वत से जलवत में असरा का चाँद
निकला जिस वक़्त मसऊदे बतहा का चाँद -@- जिस सुहानी घडी चमका तयबह का     चाँद
                                  उस दिल अफरोज़ साअत पे लाखों सलाम

जिस की अज़मत के सदके वाक़ारे हरम -@- जिसकी ज़ुल्फों पे कुरबां बहारे हरम
नौशए  बज़्मे    परवरदिगारे      हरम -@- शेहरे  यारे    इरम   ताजदारे   हरम
                                      नौबहारे शफाअत पे लाखों सलाम

जिसके क़दमों पे सजदा करें जानवर -@- मुंह से बोले शजर दे गवाही  हजर
वो  हे   महबूबे  रब मालिके बहरोबर -@- साहिबे रजअते शम्स श्क्क़ुल क़मर
                               नाइबे दस्ते क़ुदरत पे लाखों सलाम

जिसके चेहरे पे जलवों का पहरा  रहा -@- नज्मो ताहा के झुरमुट में चेहरा रहा 
हुस्न जिसका हरेक शब में गेहरा रहा -@- जिसके माथे शफाअत का  सेहरा रहा
                                उस जबीने सआदत पे लाखों सलाम

पड़ गई जिसपे महशर में बख्शा गया -@- देखा  जिस सम्त  अब्रे      करम    छागया
रुख़ जिधर हो गया ज़िन्दगी  पा गया -@- जिस तरफ उठ गई दम में दम गया
                                उस निगाहे इनायत पे लाखों सलाम 

दीनो दुनिया दिए मालो-ज़र दे दिया -@- हूरो गिल्मा दिए खुल्द कौसर दिया
दामने मक़सदे ज़िन्दगी भर  दिया -@- हाथ जिस सम्त   उठा ग़नी करदिया
                             मौजे बेहरे समाअत पे लाखों सलाम

डूबा सूरज किसी ने भी   फेरा    नहीं -@- कोई  मिस्ले     यदुल्लाह   देखा    नहीं
जिसकी ताक़त का कोई ठिकाना नहीं -@- जिसको बारे दो आलम की परवा नहीं
                               एसे बाज़ू की क़ूवत  पे लाखों सलाम

हक़ के मेहरम इमामुत्तुका वन्नुका़ -@- ज़ाते अकरम  इमामुत्तुका वन्नुका़
क़ुत्बे आलम इमामुत्तुका   वन्नुका़ -@- गौसे आज़म  इमामुत्तुका  वन्नुका
                           जल्वए शाने क़ुदरत पे लाखों सलाम

अब्रे   जूदो  अता   किसपे   बरसा नहीं -@- तेरा लुत्फो करम किस पे देखा नहीं
किस जगह और कहाँ तेरा क़ब्ज़ा नहीं -@- एक मेरा ही   रेहमत  में  दअवा नहीं
                                शाह की सारी उम्मत पे लाखों सलाम

मुर्शिदी  शाह    अहमद   रज़ा   खां रज़ा -@- फेज़ियाबे    कमालाते      हस्सां    रज़ा
साथ हम सब भी हों ज़म-ज़मां ख्वां रज़ा -@- जबके खिदमत के खुदसी कहें हाँ रज़ा
                                   मुस्तफा जाने रेहमत पे लाखों सलाम

Wednesday, February 9, 2011

हज़रत ख़्वाजा सलाम जोएबार नक्शबंदी अलैहिर्रेहमह से मुलाक़ात ओर दस्तारे ख़िलाफ़त

             हज़रत ख़्वाजा दाना अलैहिर्रेहमह बल्ख़ शहर में रोनक़ अफरोज़ थे कि उसी दौरान हज़रत मौलाना मुहम्मद सईद तुर्किस्तानी से मुलाक़ात हुई.आपने फरमाया साहब ज़ादे तुम मादर-ज़ाद वाली हो आओ में तुम्हें एक वली-ए-कामिल सूफी-ए-बासफा से मिल्वादूं.हज़रत मौलाना तुर्किस्तानीने आपको हज़रत ख़्वाजा सलाम नक्शबंदी अलैहिर्रेहमह से मिलवा दिया वह हज़रत ख़्वाजा दाना को देख कर मुस्कुराए ओर फरमाया जमालुद्दीन दाना! कहाँ रह गए थे? मैं तो तुम्हें तलाश कर रहा था क्योंकि तुम्हारे हिस्से की जो नेअमतें मेरे पास बतौरे अमानत रख्खी हुई है. इसको तुम्हारे हवाले करके इत्मिनान का सांस लेसकूं.
           हज़रत ख़्वाजा सलाम नक्शबंदी ने ख़्वाजा दाना पर ख़ुशी से तवज्जुह फरमाई ओर तमाम ज़ाहिर व बातिन नेअमतें अता फरमाने के बअद सिलसिला-ए-नक्शबंदी की ख़िलाफ़त से भी सरफ़राज़ फरमा दिया. (हज़रत ख़्वाजा दाना साहब को हज़रत ख़्वाजा उबैदुल्लाह अहरार नक्शबंदी अलैहिर्रेहमह से भी फैज़े उवैसी हासिल हुआ है.

Thursday, February 3, 2011

काया पलट

           हज़रत ख़्वाजा दाना साहब हसबे मअमूल इबादते खुदावंदी में मशगूल थे कि अचानक एक दिन जंगल में मजज़ूब बाबा चोपाल से मुलाक़ात हो गई. यही मिलाप आपकी ज़िन्दगी में काय पलट का बाईस हुआ, आपने हज़रत बाबा चोपाल को देखकर भागना चाहा तो उन्हों ने फरमाया: इन्सान से भागना चेह मअना?ये सुन कर हज़रत ख्वाजा दाना वहीं ठहेर गए.बाबा चोपाल ने हज़रत ख़्वाजा दाना से मुख़ातिब होकर फरमाया: साहब ज़ादे! मैं यहाँ इस लिए आया हूँ कि तुम्हें जंगल की ज़िन्दगी से निकालकर इंसानों की तरफ ले चलूं.इन्सान को अल्लाह तआला ने इन्सानों के काम आने के लिए दुनिया में भेजा है.जानवरों में रेहकर ज़िन्दगी बसर करने के लिए नहीं भेजा है, आपके वालिदे गिरामी हज़रत ख़्वाजा सैयद बादशाह परदहपोश इन्सानों ही में रेहते थे ओर इन्सानों की हर दीनी व दुनियावी ज़रूरतों को पूरा करते थे अब अगर तुम जंगल में रहोगे तो क्या मख्लूक़े ख़ुदा की ज़रूरतों को पूरा कर सकोगे? दुर्वेश बाबा चोपाल की बातों ने हज़रत ख़्वाजा दाना के दिल व दिमाग़ में हलचल पैदा कर दी.अचानक दूसरी जानिब से एक और दुरवेश हज़रत बाबा मजज़ूब तुर्किस्तानी नमूदार हुए.आते ही उन्हों ने हज़रत ख़्वाजा दाना साहब को मुख़ातब कीया. अरे दाना! तुम अभी तक इस जंगल में मौजूद हो? हज़रते ख़्वाजा दाना हैरान हो गए कि यह कौन है ओर इनको मेरा नाम किस तरह मअलूम हो गया? इसके बअद तीनों हज़रात एक दुसरे से गले मिले.हज़रत बाबा चोपाल अलैहिर्रेहमा ने अपनी बगल से तीन गरम गरम रोटियां निकालीं ओर हज़रत ख़्वाजा दाना ओर दुरवेश बाबा मजज़ूब तुर्किस्तानी के सामने रख दीं.फिर इन में एक रोटी उठा कर उसके तीन टुकड़े किये.एक खुद खाया ओर एक हज़रत ख़्वाजा दाना को दिया ओर एक हज़रत मजज़ूब तुर्किस्तानी को पेश कीया हज़रत बाबा चोपाल का दिया हुआ टुकड़ा खाने के बअद आपकी ज़िन्दगी में एक नुमायां तब्दीली वाक़ेअ हा गई.आपने फ़ौरन जंगल को ख़ैर आबाद कीया ओर शहर की जानिब रवाना हो गए. 

Tuesday, February 1, 2011

शहर बल्ख़ में आमद

           अठारह साल जंगल में गुज़ारने के बाद हज़रत ख़्वाजा दाना साहब शहर बल्ख़ में तशरीफ़ लाए यहाँ आप ने बल्ख़ के मशहूर सूफी हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद पारसा के पोते हज़रत ख़्वाजा अब्दुल हादी के मकान पर क़याम फरमाया.हज़रत ख़्वाजा अब्दुल हादी की बीवी शाहबेगम पूरे ख़ुलूस व मुहब्बत के साथ हज़रत ख़्वाजा दाना साहब की ख़िदमत को अपने लिए बाइसे अज़मत समझते हुए अंजाम देती थीं,खाना अपने हाथ से खिलातीं ओर हर वक़्त हज़रत ख़्वाजा दाना पर नज़रे खुसूसी रखती थीं.जब तक आप उनके यहाँ क़याम पज़ीर रहे किसी भी क़िस्म की कोई तकलीफ आपको नहीं हुई.

ख़तरनाक जानवरों के साथ जंगल में अल्लाह तआला की इबादत

            हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद साहब के जाने के बाद हज़रत ख़्वाजा दाना साहब जंगल ही में तनेतनहा अल्लाह रब्बुल इज्ज़त की इबादत में मशगूल हो गए. जंगल के  ख़तरनाक जानवरों से आप को बहुत प्यार था.रात को जब आप अल्लाह अल्लाह करते तो जंगल के शेर,बबर,चीता,रीछ,हिरन,हाथी वगैरह आप के चारों तरफ बैठ जाते ओर अल्लाह अल्लाह की नूरानी सदाओं को बहुत मेह्विय्यत ओर जज़्बे से सुनते, बाज़ औक़ात तो यूँ महसूस होता कि गोया वो जानवर भी उनके  ज़िक्र  के साथ शामिल हो गए हैं.इस तरह उन्हें जंगल में रहते हुए कुछ अरसा गुज़र गया,लेकिन अल्लाह तआला ने आपकी  ज़ाते  गिरामी से अपने बन्दों के लिए फैज़ हासिल करना लिखा था. इस लिए अब जंगल की ज़िन्दगी से आप दुनियावी ज़िन्दगी की तरफ राग़िब होते हैं.

तालीम व तरबियत के लिए दूसरी बशारत

            हज़रत ख़्वाजा हसन अता रहमतुल्लाहि तआला अलैह के विसाल फरमाने के बाद हज़रत ख़्वाजा दाना साहब के वालिदे गिरामी हज़रत हज़रत ख़्वाजा सैयद बादशाह पर्दहपोश ने अपने दुसरे हर-दिल-अज़ीज़ शागिर्द हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद को ख्वाब में ये हुक्म दिया के वो मेरे साहब ज़ादे ख़्वाजा दाना को मज़ीद तालीम व तरबियत दें कि अभी उन में कुछ कमी है, चुनान्चे पीर व मुर्शिद का हुक्म मिलते ही हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद हज़रत ख़्वाजा दाना की तलाश में निकल पड़े. तलाश करते करते ख़ुरासान के जंगल में पहोंचे तो क्या देखते हैं कि हज़रत ख़्वाजा दाना हिरनों के टोले में जलवा अफरोज़ हैं. हरनों ने हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद को देखा तो भागने लगे. हज़रत ख़्वाजा दाना भी चल पड़े, ये सिलसिला तीन दिन तक चलता रहा ओर हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद की हज़रत ख़्वाजा दाना साहब से रू-ब-रू मुलाक़ात न हो सकी. आख़िर एक दिन हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद ने इन्तेहाई आजिज़ी ओर इन्केसारी ओर मिन्नत व समाजत के बाद उनका रास्ता रोक कर फरमाया! साहब ज़ादे! में आपके वालिदे गिरामी का मुरीद हूँ, उनहोंने ख्वाब में तशरीफ़ लाकर मुझे आप की तालीम व तरबियत के लिए हुक्म दिया है ओर आप हैं कि मुझ से दूर-दूर भाग रहे हैं. चुनान्चे इतना सुनना था कि हज़रत ख़्वाजा दाना फ़ौरन रुक गए ओर उसी जगह झोंपड़ी में दोनों रहने लगे. हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद ने बड़ी मेहनत व जांफिशानी के साथ हज़रत को मुकम्मल छे(६) साल तक शरीअत, तरीक़त, हकीकत, ओर मारिफत, की मुकम्मल तालीम से आरास्ता फरमाने के बाद हज़रत ख़्वाजा दाना की इजाज़त से अपने वतन लौट आये.