हज़रत ख़्वाजा दाना रहमतुल्लाह अलैह ब-हुक्मे इलाही सुरत मुग़ल फ़रमाँ-रवा अकबर बादशाह के ज़माने में तशरीफ़ लाये.आप की तशरीफ़ आवरी से पेहले मुग़ल बादशाह अकबर का हुक्म-नामा सुरत के हाकिम अब्दुर्रेह्मान तेहरानी ओर नाज़िमे क़िलादार क़लीज खान के नाम पहुँच चूका था कि हज़रत ख़्वाजा दाना साहब का शायाने शान इस्तिक्बाल कीया जाये, चुनान्चे हाकिम ओर नाज़िमे सुरत अपने अपने रुफ्क़ा ओर उमरा के हमराह बंदरे सुरात पर आप का पुर तपाक इस्तिक्बाल कीया गया.शेहरे सुरत आप को बहुत पसंद आया.उस वक़्त सुरत एक अज़ीम बन्दरगाह था ओर यहीं से लोग हज्जे बैतुल्लाह के लिए जाया करते थे इसलिए इसको बाबुल मक्का के नाम से भी याद कीया जाता है.हाल में जो इमारत मुनिसिपल कॉरपोरेशन के नाम से जानी जाती है ये हाजियों का मुसाफिर खाना था ओर मक्काई पुल जो नानपुरा के पास है उसका नाम मक्का पुल था.इस पुल से हज्जाजे-किराम जहाज़ में बेठ कर हरमैन-शरीफैन के लिए रवाना होते थे.हज़रत शहंशाहे सुरत ख़्वाजा दाना साहब सुरत ओर इहेलियाने सुरत से बेइन्तिहा मुहब्बत फरमाते थे हज़रत कि मुहब्बत इन अशआर से ज़ाहिर हे जो आज भी दरगाह शरीफ के बुलंद दरवाज़े पर तहरीर हे.आप ने फरमाया!
कर्द तहरीर मुसव्विरे क़ुदरत
बाद आबाद बंदरे सुरत
पए इमदाद कश्ती हाए ईं बेहेर
बाद आबाद बंदरे सुरत
पए इमदाद कश्ती हाए ईं बेहेर
वतन दारेम अन्दर कुन्ज ईं शहर
बरीं ख़िदमत ज़े-हक़ गुश्तैम मामूर
बरीं ख़िदमत ज़े-हक़ गुश्तैम मामूर
चे खुश गुफ्तंद अल्मामूर माज़ूर
तर्जुमा: "मुसव्विरे क़ुदरत ने तहरीर कीया है के सुरत आबाद है ओर आबाद रहेगा यहाँ की कश्तियों की इमदाद के लिए में ने इस शेहर के गोशे में अपना वतन बनाया है.ख़ुदावन्दे करीम की जानिब से सुरत के रहने वालों की हर किस्म की ख़िदमत करने के लिए मुक़र्रर हुआ हूँ.क्या अच्छा है माज़ूरों ओर बेकसों की ख़िदमत करने के लिए मुक़र्रर हुआ हूँ" यानी ख़ुलासए कलाम ये के अल्लाह तआला के हुक्म से में हर तरह की ख़िदमत के लिए मुक़र्रर कीया गया हूँ कोई दुःख का मारा ग़रीब यतीम! मिस्कीन या बेवह या कोई हाजतमंद मेरे पास आएगा उसकी हर हाजत पूरी करूंगा.ये सख़ी दाना शहंशाहे सुरत की ज़ाते गिरामी है कि आज भी आप के मज़ारे पुर अनवार पर हर क़िस्म के लोग जोक़ दर जोक़ हाज़िर होते हैं ओर अपनी दिली मुरादें हासिल करते हैं.किसी को औलाद मिल रही है तो किसी की ग़रीबी ओर तंगदस्ती दूर हो रही है तो कोई ला-इलाज बीमारी में मुब्तिला बीमार,शिफा पा रहा है तो किसी को इल्मे ज़ाहिरी व बातिनी से नवाज़ा जा रहा है.अल्गर्ज़ आप की बारगाह में जो भी रोता हुआ आता है वो हँसता हुआ जाता है.इन्शाअल्लाह ये फैज़ क़यामत तक जारी व सारी रहेगा.
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