Friday, January 7, 2011

परवरिश के लिए बशारत ओर बचपन की पेहली करामत

      हज़रत ख़्वाजा दाना साहब के वालिदे गिरामी हज़रत ख़्वाजा सैयद पर्दापोश बादशाह अलयहिर्रेह्मा ने अपने अज़ीज़ शागिर्द ओर मुरीदे ख़ास हज़रत ख़्वाजा हसन अता को आलमे रूया में बशारत दी के अय मेरे मुरीदे सादिक़! मेरे शीर ख़्वार बच्चे ख़्वाजा सैयद जमालुद्दीन दाना की परवरिश ओर तालीम व तरबियत की तरफ ख़ास ध्यान दें ओर कभी भी उससे ग़ाफिल न हों.इसी क़िस्म की बशारत मशहूर नक्शबंदी बुज़ुर्ग हज़रत ख़्वाजा उबैदुल्लाह एहरार रहमतुल्लाह अलैह ने भी आलमे रूया में आप को दी.हज़रत ख़्वाजा हसन अता ने अपने पीर-व-मुर्शिद की बारगाह में अर्ज़ कीया सरकार! बच्चे की अम्मी-जान कहाँ हैं? हज़रत ख़्वाजा बादशाह पर्दापोश ने जवाबन फरमाया हसन अता! ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं है मेरी बीवी मेरे पास आना चाहती है जो फानी दुनिया से आलमे बक़ा की तरफ जाना चाहे उसे कोन रोक सकता है? इतना सुनते ही हज़रत ख़्वाजा अता हसन के होश उड़ गए बड़ी ही परेशानी के आलम में आप ने अर्ज़ कीया हुज़ूर शीरख़्वार बच्चा फिर कहाँ है आप जल्दी बताईये ताकि में अभी इसी वक़्त उनके पास हाज़िर होकर उनकी  ख़िदमत  का  शरफ  हासिल करूँ! हज़रत  ख़्वाजा बादशाह ने अपने मुरीदे सादिक़ को पूरा-पूरा पता समझा दिया ओर ताकीद फरमाई के पेहली फुर्सत में जल्द-अज़-जल्द उनके पास हाज़िर हो जाऊं. अपने पीरो मुर्शिद के बताए हुए पते की जानिब रवाना हो गए ओर कईं दिन की लम्बी मसाफ़त तय करने के बाद बताई हुई निशानी के मुताबिक़ एक झोंपड़ी नज़र आई ज़रा करीब पहुँच कर झोंपड़ी के दरवाज़े के पास खड़े होकर अपने पीरो मुर्शिद की बीवी से इजाज़त तलब करने लगे. मोहतरम ख़ातून! में आप के शोहर नामदार का मुरीद हसन अता हूँ मुझे अन्दर आने की इजाज़त अता फरमाएं. अन्दर से कोई जवाब नहीं मिला. आपने फिर कहा ख़ातून! मोहतरम! मेने आपसे कुच्छ अर्ज़ कीया है की आप ने मेरी बात नहीं सुनी? अन्दर से कोई जवाब नहीं मिला तो आप की तशवीश बढ़ गयी ओर जिस बात का डर उनके दिल में पैदा हुआ था वह पूरी होती हुई नज़र आ रही थी लेकिन फिर भी आप ने एक बार ओर इजाज़त तलब फरमाई ओर अर्ज़ कीया! मोहतरम ख़ातून! में अन्दर आना चाहता हूँ अगर आपने फिर कोई जवाब न दिया तो में अन्दर दाखिल हो जाऊँगा.इसबार भी जवाब न मिलने की सूरत में आप अन्दर दाखिल हो गए तो क्या देखा कि पीरो मुर्शिद की बीवी दाइए-अजल को लब्बैक केह चुकी है. इन्ना लिल्लाहि व-इन्ना इलयही राजिऊन! हज़रत ख़्वाजा हसन अता ने फ़ौरन बच्चे को अपनी गोद में लिया ओर जंगल की जानिब रवाना हो गए.थोड़ी देर के बाद चन्द ख्वातीन को अपने साथ लेआये ओर मर्हूमा के ग़ुस्ल वगैरह का इन्तेज़ाम करवा दिया ओर तजहीज़ो तकफीन(कफ़न-दफ़न) को अन्जाम देकर शीरख़्वार बच्चे की परवरिश में लग गए.
       हज़रत ख़्वाजा अता हसन अपने पीरो मुर्शिद के लख्ते जिगर हज़रत ख्वाजा दाना अलयहिर्रेह्मा को लेकर ख्वारिज़म से बाहर मा-वाराउन-नेहर के जंगल में एक तालाब के किनारे मुक़ीम होगए. जंगल में शीरख़्वार बच्चे के लिए दूध का कोई माक़ूल इन्तिज़ाम न था ओर आपने दूध पिलाने के लिया दाया की तलाश में पूरा दिन गुज़ार दिया जब बिलकुल मायूस हो गए तो मजबूरन अल्लाह तबारक व तआला की बारगाहे आलियह में अपनी पेशानी को झुका कर दुआ की कि: 
      "अय परवरदिगारे आलम तू मुसब्बबुल असबाब है तो ही राज़िक़ है इस मासूम बच्चे  कि परवरिश ओर निगेह्दाश्त मेरे ज़िम्मा है ओर तू जानता है कि इस बच्चे को दूध कि ज़रुरत है इसलिए अय मेरे मोला इस बच्चे के लिए दूध का इन्तिज़ाम फरमादे में ने दाया तलाश कि लेकिन न मिलसकी अब तेरा ही सहारा है". दुआ मांगने के बाद हज़रत ख़्वाजा हसन अता अलयहिर्रेह्मा वापस उस मक़ाम पर आये जहां हज़रत ख़्वाजा दाना को छोड़ गए थे.अभी कुच्छ ही फासले पर थे कि क्या देखते हैं कि कोई ख़तरनाक जानवर हज़रत ख़्वाजा दाना को खा रहा है आप जल्दी-जल्दी क़दम बढ़ाते हुए हज़रत के पास पहुंचे तो ये मंज़र देखकर बहुत तअज्जुब  में होगए कि एक लूली हरनी हज़रत ख़्वाजा दाना को दूध पिला रही है.आपने ख़ुदावन्दे खुद्दूस का शुक्र अदा कीया ओर समझ गए कि ये सब ग़ैबी इन्तिज़ाम अल्लाह तआला कि जानिब से कीया गया है.उस हिरनी का ये मामूल था कि रोजाना सुबहो-शाम अपने मुक़र्रारह वक़्त पर आती ओर हज़रत ख़्वाजा दाना को दूध पिला कर चली जाती.ये सिलसिला हज़रत ख़्वाजा दाना साहब कि दूध पीने की उम्र तक जारी रहा. दूध का ज़माना ख़त्म होने के बाद आप का गुज़र-बसर जंगल के फूल-फल ओर पत्तों पर होने लगा. इस तरह से आपकी उम्र बारह साल हो गयी.
      हज़रत ख़्वाजा अबुल-क़ासिम साहब ने मनाकिबुल-अख्यार में अपने वालिदे गिरामी के मुकम्मल हालात तहरीर फरमाए हैं. वह लिखते हैं कि वालिदे गिरामी मुझ से हमेशा फरमाते बेटा अबुल-क़ासिम! मुझे जो मज़ा जंगल के घास-पूस में आता था वो मज़ा इन मुर्ग्गन ग़िज़ाओं में नहीं मिलता है. 

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