Sunday, June 19, 2011

कश्फ़ व करामात

      हज़रत ख़्वाजा दाना रहमतुल्लाह अलैह मादर ज़ाद वली हैं आपकी
ज़ाते मुबारका से बहुतसी करामात का ज़हूर हुआ. उन में चंद करामतें तेहरीर करने की सआदत हासिल कर रहा हूँ मुलाहिज़ा फरमाएं.
(१) मुग़ल फरमा रवा अकबर बादशाह का ज़माना था, अकबर का बेटा दानियाल इन दिनों बुरहानपुर का गवर्नर था. उसका बेटा तेमूर सख्त बीमार हो गया. तजरुबा कार ओर मुस्तनद हुकमा का इलाज कीया लेकिन वह सेहेतयाब न हो सका. आखिर इसी बीमारी में इसका इंतिक़ाल हो गया. हज़रत को खबर हुई तो आपने अपने बड़े फ़र्ज़न्द ख़्वाजा सैयद मुहम्मद हाशिम को साथ लेकर बुरहानपुर फातेहा के लिए शेह्ज़ादा दानियाल के यहाँ तशरीफ़ ले गए शेह्ज़ादा दानियालने तेमूर की लाश हज़रत की गोद में रख दी ओर ज़ारो क़तार रोते हुए अपने बेटे की दोबारह ज़िन्दगी के लिए दुआ की इल्तिजा की. हज़रत को उस का रोना देखा नहीं गया. आपने उस पर रेहेम फरमाते हुए मरे हुए शेह्ज़ादे तेमूर के मुर्दा जिस्म पर हाथ फेरा. शेह्ज़ादा जिन्दा हो गया. हाज़रीन ने आपकी करामत को देखा तो क़दमों पर गिर गए ओर पुरे महल ओर बुरहानपुर में ख़ुशी की लेहेर दोड़ गयी.
       
(२) हज़रत ख़्वाजा दाना मेअराजुन्नबी ओर ईद-ए-मीलादुन्नबी सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम बड़े ही एहतिमाम से मनाते थे. मजालिस मुनअकिद की जाती थीं. जिस में अकाबिर सादाते किराम, मशाइखे इज़ाम, उल्माए किराम ओर वाज़राए ममलिकत शिरकत फरमाते थे उमदा से उमदा इतरियात ओर लज़ीज़ से लज़ीज़ खाने पकाए जाते थे ओर रौशनी के लिए बड़ी छोटी मोम बत्तियां रोशन की जाती थीं. इन में दो बत्तियां अकबरी बारह मन की थीं. एक साल ऐसा हुआ कि मेअराजुन्नबी सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम के मुबारक मौक़े पर आपके पास बज़ाहिर कोई इन्तेजाम नहीं था ओर तारीख़ बिलकुल क़रीब से क़रीबतर आ चुकी थी. ख़ादिम ने आकर आप से अर्ज़  कीया तो आपने फरमाया: तुम परेशान क्यूँ होते हो. अगर ख़ुदावंदे खुद्दूस की मर्ज़ी होगी कि उसके हबीब सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम कि मेअराज शायाने शान से मनाई जाए तो वह खुद इन्तेज़ाम फरमादेगा. जब तारीख़ बिलकुल करीब आ गयी तो खादिम फिर हाज़िर हुआ. हज़रत उस मर्तबह जवाब देने के बजाए ख़ादिम को क़रीब ही के गाँव "सिहोर गाँव" ले गए. रास्ते मैं एक नाला पड़ा. हज़रत ने ख़ादिम को एक हुक्म दीया ख़र्चा ले आ. ख़ादिम फ़ौरन हुक्म की तामील करते हुए नाले में कूद पड़ा. यहाँ उसे एक थेली मिली जो बिलकुल ख़ुश्क और मुहरबंद थी हज़रत ने इसकी मुहर तोड़ने का हुक्म दीया खादिम ने मुहर तोड़ कर थेली खोली तो उसमे से ३००० मुहम्मदी सिक्के निकले. हज़रत ने फरमाया ख़र्च तो मिल गया लेकिन एक बात याद रखना इस राज़ को किसी के सामने ज़ाहिर मत करना.


(३) हज़रत को जंगल से हमेशा लगाव रहा. शादी हुई बच्चे हुए मगर फिर भी आप जंगल ज़रूर जाते और घंटों इधर उधर घुमते फिरते और अपने मक़ाम पर तशरीफ़ ले आते. एक दिन इसी तरह आप जंगल में चेहेल कदमी फरमा रहे थे अचानक शेहेर के चाँद मुअज्ज़ज़ हज़रात आप की ख़िदमत में हाज़िर हुए और इन्तिहाई आजिज़ी और इन्केसारी के साथ अर्ज़ किया. हुज़ूर! हमारे बादशाह सलामत को लक़वह हो गया है. बोहोत इलाज कीया गया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. आप इनके हक़ में शिफाए कामिला-आजिला के लिए दुआ फरमा दें. आप ने फरमाया, में शहर में आता हूँ. तुम्हारे बादशाह और मुझे एक कमरे में बंद कर देना और तमाम रास्ते और सुराख़ भी बंद कर देना. आप के हुक्म के मुताबिक़ ऐसा ही कीया गया. इशा की नमाज़ के बाद हज़रत और बादशाह दोनों अन्दर चले गए और बाहर से ताला लगा दीया गया. नमाज़े फज्र के लिए कमरा खोला गया तो क्या देखते हैं कि बादशाह सलामत तो तंदरुस्त और तवाना खड़े हुए हैं और हज़रत ख़्वाजा दाना साहब ग़ाइब हैं. लोगों ने बादशाह सलामत से उनकी बिमारी और फिर सेहत के मुताल्लिक़ पूछा तो बादशाह ने कहा रात के आखरी हिस्से में हज़रत मेरे पास आए कुछ पढ़ कर दम कीया और अपना दस्ते मुबारक मेरे बदन पर फेरा तो मै उसी वक़्त अच्छा हो गया इसके बाद हज़रत ने उस दीवार की  तरफ ऊँगली से इशारह फरमाया तो दीवार फट गयी और आप यहाँ से ग़ाइब हो गए.


(४) हज़रत ख़्वाजा दाना साहब ने सुरत वालों के लिए एक ख़ास दिन मुक़र्रर फरमाया था जिस में मर्द और औरत हाज़िर होकर अपनी इल्मी प्यास को बुझाते थे और ज़ाहिर व बातिनी उलूम से अपने आप को मुशर्रफ करते थे. किसी हासिद ने अकबर बादशाह के पास शिकायत भेजी कि हज़रत ख़्वाजा दाना अपने इर्द गिर्द औरतों का मजमा इकठ्ठा करते हैं और औरतें बेपर्दह मर्दों के साथ बैठती हैं. अकबर बादशाह ने अपने एक ख़ास जासूस को असल हक़ीक़त अलाश करने के लिए भेजा. जासूस जिस वक़्त दरगाह शरीफ के इहाते मे दाखिल हुआ तो औरतों का बे-परदे कि हालत मे एक जम्मे ग़फीर देखा. उसने हज़रत से मुलाक़ात की और अकबर बादशाह का सलाम पहोंचा कर जाने लगा तो रौशन ज़मीर पीर हज़रत सैयद जमालुद्दीन ख़्वाजा दाना साहब ने फरमा दीया. अकबर बादशाह को मेरा सलाम केहना और ये डब्बी उनको ही देना.
            ख़्वाजा दाना साहब ने इस बंद डब्बी मे जलता हुआ अंगारह रखा और इसके बिलकुल बाज़ु में थोड़ी सी रूई रख दीया और डब्बी को अच्छी तरह बंद करके जासूस के हवाले कर दीया जब जासूस देहली पोहंचा और डब्बी अकबर बादशाह के सुपुर्द कीया और अकबर बादशाह ने डब्बी खोला तो रूई वैसी की वैसी ही महफूज़ थी और अंगारह जो सुरत से जलाकर दीया था देहली पहुँचने के बाद भी वैसा ही जल रहा था. अकबर बादशाह ने मुआफी मांगी और आपका मुरीद बन गया.


(५)
              

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