ख़्वाजा दाना रहमतुल्लाह अलैह की उम्र शरीफ एकसो चालीस (१४०)बरस की हुई कि एक दिन अचानक आपकी तबीअत ज़ियादा ख़राब हो गयी. बार बार बेहोशी का आलम तारी होता. जब मुकम्मल होश आया तो आपने अपने फ़रज़न्दों,पोतों, पर-पोतों, रिश्तेदारों और शागिर्दों को तलब फरमाया ओर सब से पूछा आज कौनसी रात है? हाज़रीन ने कहा आज शबे जुमा है, इतना सुनना था कि आपने फ़ौरन सूरए-यासीन बुलंद आवाज़ से पढना शुरू कर दिया.जब सूरए-यासीन पढ़ चुके तो कलमए तैयबह पढना शुरू किया यहाँ तक कि नमाज़े फज्र की अज़ान शुरू हो गयी थोड़ी देर बाद आपने आँखें बंद करलीं ओर फरमाया अच्छा खुदा हाफ़िज़ में तो चला.....! इसके साथ ही आपकी रूहे क़फसे उन्सरी से परवाज़ कर गयी. ये वाक़िआ ५ सफरुल मुज़फ्फर १०१६ हिजरी १६०७ इसवी बरोज़ जुमा का है.
आपके विसाल की ख़बर बिजली की तरह पुरे शहर में फेल गयी. जुमा की नमाज़ के बाद आपकी नमाज़े जनाज़ा अदा की गयी ओर उस वक़्त जो आपका आस्ताना मुबारक नज़र आ रहा है उसी में आपको सुपुर्दे ख़ाक किया गया.
हज़रत ख़्वाजा दाना रहमतुल्लाह अलैह की तदफीन के बाद ऐसी सख्त़ बारिश हुई के आपके मज़ारे पुरअनवार का नामो निशान मिट गया. सब के सब रन्जीदा ओर परेशान हो गए. रात को आपने अपने साहब ज़ादे हज़रत ख़्वाजा मुहम्मद हाशिम को ख़्वाब में बताया कि मेरी कब्र फलां जगह इतने फासले पर है. सुबह को तलाश में निकले तो कब्र तो मिल गयी लेकिन कब्र में आपकी लाश मुबारक न थी. ये देख कर हज़रत ख़्वाजा हाशिम को बताया कि परेशानी की कोई बात नहीं है. कल मेरा जिस्म हरमैन शरीफ ले जाया गया था इस लिए में कब्र में नहीं था.अब आ गया हूँ चुनान्चे सुबह जब हज़रत ख़्वाजा हाशिम साहब ने अपने हज़ारों रुफ्क़ाए किराम के हमराह कब्र शरीफ खोली तो आपको उसी में मौजूद पाया जैसा दफन किया गया था. यहाँ तक कि कफ़न पर दाग़ तक नहीं था. हज़ारों लोगों ने आपकी ज़ियारत की उसके बाद फिर इतरो-गुलाब और ख़ुश्बू लगा कर क़ब्रे अनवर को बंद कर दिया गया.
नोट: हज़रत ख़्वाजा मुहम्मद हाशिम साहब की कब्र हज़रत ख़्वाजा दाना साहब के गुंबद के पीछे है ओर हज़रत ख़्वाजा अबुल हुसैन अलैहिर्रेह्मा गुंबद के अन्दर आपके बाज़ु में मौजुद हैं.
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Masha ALLAH 🕌🇮🇳❤️🤲
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