Friday, June 24, 2011

सुरत मुनिसिपल कॉरपोरेशन

सुरत मुनिसिपल कॉरपोरेशन जो हज़रत ख्वाजा दाना रेह्मतुल्लाह अलैह के ज़माने में हाजियों का मुसाफिर खाना हुआ करता था.

Sunday, June 19, 2011

कश्फ़ व करामात

      हज़रत ख़्वाजा दाना रहमतुल्लाह अलैह मादर ज़ाद वली हैं आपकी
ज़ाते मुबारका से बहुतसी करामात का ज़हूर हुआ. उन में चंद करामतें तेहरीर करने की सआदत हासिल कर रहा हूँ मुलाहिज़ा फरमाएं.
(१) मुग़ल फरमा रवा अकबर बादशाह का ज़माना था, अकबर का बेटा दानियाल इन दिनों बुरहानपुर का गवर्नर था. उसका बेटा तेमूर सख्त बीमार हो गया. तजरुबा कार ओर मुस्तनद हुकमा का इलाज कीया लेकिन वह सेहेतयाब न हो सका. आखिर इसी बीमारी में इसका इंतिक़ाल हो गया. हज़रत को खबर हुई तो आपने अपने बड़े फ़र्ज़न्द ख़्वाजा सैयद मुहम्मद हाशिम को साथ लेकर बुरहानपुर फातेहा के लिए शेह्ज़ादा दानियाल के यहाँ तशरीफ़ ले गए शेह्ज़ादा दानियालने तेमूर की लाश हज़रत की गोद में रख दी ओर ज़ारो क़तार रोते हुए अपने बेटे की दोबारह ज़िन्दगी के लिए दुआ की इल्तिजा की. हज़रत को उस का रोना देखा नहीं गया. आपने उस पर रेहेम फरमाते हुए मरे हुए शेह्ज़ादे तेमूर के मुर्दा जिस्म पर हाथ फेरा. शेह्ज़ादा जिन्दा हो गया. हाज़रीन ने आपकी करामत को देखा तो क़दमों पर गिर गए ओर पुरे महल ओर बुरहानपुर में ख़ुशी की लेहेर दोड़ गयी.
       
(२) हज़रत ख़्वाजा दाना मेअराजुन्नबी ओर ईद-ए-मीलादुन्नबी सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम बड़े ही एहतिमाम से मनाते थे. मजालिस मुनअकिद की जाती थीं. जिस में अकाबिर सादाते किराम, मशाइखे इज़ाम, उल्माए किराम ओर वाज़राए ममलिकत शिरकत फरमाते थे उमदा से उमदा इतरियात ओर लज़ीज़ से लज़ीज़ खाने पकाए जाते थे ओर रौशनी के लिए बड़ी छोटी मोम बत्तियां रोशन की जाती थीं. इन में दो बत्तियां अकबरी बारह मन की थीं. एक साल ऐसा हुआ कि मेअराजुन्नबी सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम के मुबारक मौक़े पर आपके पास बज़ाहिर कोई इन्तेजाम नहीं था ओर तारीख़ बिलकुल क़रीब से क़रीबतर आ चुकी थी. ख़ादिम ने आकर आप से अर्ज़  कीया तो आपने फरमाया: तुम परेशान क्यूँ होते हो. अगर ख़ुदावंदे खुद्दूस की मर्ज़ी होगी कि उसके हबीब सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम कि मेअराज शायाने शान से मनाई जाए तो वह खुद इन्तेज़ाम फरमादेगा. जब तारीख़ बिलकुल करीब आ गयी तो खादिम फिर हाज़िर हुआ. हज़रत उस मर्तबह जवाब देने के बजाए ख़ादिम को क़रीब ही के गाँव "सिहोर गाँव" ले गए. रास्ते मैं एक नाला पड़ा. हज़रत ने ख़ादिम को एक हुक्म दीया ख़र्चा ले आ. ख़ादिम फ़ौरन हुक्म की तामील करते हुए नाले में कूद पड़ा. यहाँ उसे एक थेली मिली जो बिलकुल ख़ुश्क और मुहरबंद थी हज़रत ने इसकी मुहर तोड़ने का हुक्म दीया खादिम ने मुहर तोड़ कर थेली खोली तो उसमे से ३००० मुहम्मदी सिक्के निकले. हज़रत ने फरमाया ख़र्च तो मिल गया लेकिन एक बात याद रखना इस राज़ को किसी के सामने ज़ाहिर मत करना.


(३) हज़रत को जंगल से हमेशा लगाव रहा. शादी हुई बच्चे हुए मगर फिर भी आप जंगल ज़रूर जाते और घंटों इधर उधर घुमते फिरते और अपने मक़ाम पर तशरीफ़ ले आते. एक दिन इसी तरह आप जंगल में चेहेल कदमी फरमा रहे थे अचानक शेहेर के चाँद मुअज्ज़ज़ हज़रात आप की ख़िदमत में हाज़िर हुए और इन्तिहाई आजिज़ी और इन्केसारी के साथ अर्ज़ किया. हुज़ूर! हमारे बादशाह सलामत को लक़वह हो गया है. बोहोत इलाज कीया गया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. आप इनके हक़ में शिफाए कामिला-आजिला के लिए दुआ फरमा दें. आप ने फरमाया, में शहर में आता हूँ. तुम्हारे बादशाह और मुझे एक कमरे में बंद कर देना और तमाम रास्ते और सुराख़ भी बंद कर देना. आप के हुक्म के मुताबिक़ ऐसा ही कीया गया. इशा की नमाज़ के बाद हज़रत और बादशाह दोनों अन्दर चले गए और बाहर से ताला लगा दीया गया. नमाज़े फज्र के लिए कमरा खोला गया तो क्या देखते हैं कि बादशाह सलामत तो तंदरुस्त और तवाना खड़े हुए हैं और हज़रत ख़्वाजा दाना साहब ग़ाइब हैं. लोगों ने बादशाह सलामत से उनकी बिमारी और फिर सेहत के मुताल्लिक़ पूछा तो बादशाह ने कहा रात के आखरी हिस्से में हज़रत मेरे पास आए कुछ पढ़ कर दम कीया और अपना दस्ते मुबारक मेरे बदन पर फेरा तो मै उसी वक़्त अच्छा हो गया इसके बाद हज़रत ने उस दीवार की  तरफ ऊँगली से इशारह फरमाया तो दीवार फट गयी और आप यहाँ से ग़ाइब हो गए.


(४) हज़रत ख़्वाजा दाना साहब ने सुरत वालों के लिए एक ख़ास दिन मुक़र्रर फरमाया था जिस में मर्द और औरत हाज़िर होकर अपनी इल्मी प्यास को बुझाते थे और ज़ाहिर व बातिनी उलूम से अपने आप को मुशर्रफ करते थे. किसी हासिद ने अकबर बादशाह के पास शिकायत भेजी कि हज़रत ख़्वाजा दाना अपने इर्द गिर्द औरतों का मजमा इकठ्ठा करते हैं और औरतें बेपर्दह मर्दों के साथ बैठती हैं. अकबर बादशाह ने अपने एक ख़ास जासूस को असल हक़ीक़त अलाश करने के लिए भेजा. जासूस जिस वक़्त दरगाह शरीफ के इहाते मे दाखिल हुआ तो औरतों का बे-परदे कि हालत मे एक जम्मे ग़फीर देखा. उसने हज़रत से मुलाक़ात की और अकबर बादशाह का सलाम पहोंचा कर जाने लगा तो रौशन ज़मीर पीर हज़रत सैयद जमालुद्दीन ख़्वाजा दाना साहब ने फरमा दीया. अकबर बादशाह को मेरा सलाम केहना और ये डब्बी उनको ही देना.
            ख़्वाजा दाना साहब ने इस बंद डब्बी मे जलता हुआ अंगारह रखा और इसके बिलकुल बाज़ु में थोड़ी सी रूई रख दीया और डब्बी को अच्छी तरह बंद करके जासूस के हवाले कर दीया जब जासूस देहली पोहंचा और डब्बी अकबर बादशाह के सुपुर्द कीया और अकबर बादशाह ने डब्बी खोला तो रूई वैसी की वैसी ही महफूज़ थी और अंगारह जो सुरत से जलाकर दीया था देहली पहुँचने के बाद भी वैसा ही जल रहा था. अकबर बादशाह ने मुआफी मांगी और आपका मुरीद बन गया.


(५)
              

Friday, June 17, 2011

इन्तेक़ाले पुर मलाल

  ख़्वाजा दाना रहमतुल्लाह अलैह की उम्र शरीफ एकसो चालीस (१४०)बरस की हुई कि एक दिन अचानक आपकी तबीअत ज़ियादा ख़राब हो गयी. बार बार बेहोशी का आलम तारी होता. जब मुकम्मल होश आया तो आपने अपने फ़रज़न्दों,पोतों, पर-पोतों, रिश्तेदारों और शागिर्दों को तलब फरमाया ओर सब से पूछा आज कौनसी रात है? हाज़रीन ने कहा आज शबे जुमा है, इतना सुनना था कि आपने फ़ौरन सूरए-यासीन बुलंद आवाज़ से पढना शुरू कर दिया.जब सूरए-यासीन पढ़ चुके तो कलमए तैयबह पढना शुरू किया यहाँ तक कि नमाज़े फज्र की अज़ान शुरू हो गयी  थोड़ी  देर  बाद आपने  आँखें  बंद  करलीं  ओर फरमाया  अच्छा  खुदा  हाफ़िज़ में तो चला.....! इसके साथ ही आपकी रूहे क़फसे उन्सरी से  परवाज़  कर गयी.  ये  वाक़िआ  ५ सफरुल  मुज़फ्फर १०१६ हिजरी १६०७ इसवी बरोज़ जुमा का है.
      आपके विसाल की ख़बर बिजली की तरह पुरे शहर में फेल गयी. जुमा की नमाज़ के बाद आपकी नमाज़े जनाज़ा अदा की गयी ओर उस वक़्त जो आपका आस्ताना मुबारक नज़र आ रहा है उसी में आपको सुपुर्दे ख़ाक किया गया.
       हज़रत  ख़्वाजा दाना रहमतुल्लाह अलैह की तदफीन के बाद ऐसी सख्त़ बारिश हुई के आपके मज़ारे पुरअनवार का नामो निशान मिट गया. सब के सब रन्जीदा ओर परेशान हो गए. रात को आपने अपने साहब ज़ादे हज़रत  ख़्वाजा मुहम्मद हाशिम को ख़्वाब में बताया कि मेरी कब्र फलां जगह इतने फासले पर है. सुबह को तलाश में निकले तो कब्र तो मिल गयी लेकिन कब्र में आपकी लाश मुबारक न थी. ये देख कर हज़रत ख़्वाजा हाशिम को बताया कि परेशानी की कोई बात नहीं है. कल मेरा जिस्म हरमैन शरीफ ले जाया गया था इस लिए में कब्र में नहीं था.अब आ गया हूँ चुनान्चे सुबह जब हज़रत ख़्वाजा हाशिम साहब ने अपने हज़ारों रुफ्क़ाए किराम के हमराह कब्र शरीफ खोली तो आपको उसी में मौजूद पाया जैसा दफन किया गया था. यहाँ तक कि कफ़न पर दाग़ तक नहीं था. हज़ारों लोगों ने आपकी ज़ियारत की उसके बाद फिर इतरो-गुलाब और ख़ुश्बू लगा कर क़ब्रे अनवर को बंद कर दिया गया. 
      नोट: हज़रत ख़्वाजा मुहम्मद हाशिम साहब की कब्र हज़रत ख़्वाजा दाना साहब के गुंबद के पीछे है ओर हज़रत ख़्वाजा अबुल हुसैन अलैहिर्रेह्मा गुंबद के अन्दर आपके बाज़ु में मौजुद हैं.

Sunday, June 12, 2011

११३३ हिजरी मुताबिक़ १७११ ईस्वी में अमानत खान मत्सदी सुरत ने दोबारह एक आलीशान मदरसा हज़रत ख़्वाजा दाना साहब की ख़ान्क़ाह के इहाते में क़ाइम कीया


गुजरात में मुसलमानों की आमद ओर दारुल-उलूम का क़याम

      सरज़मीने सुरत में मुसलामानों कि आमदोरफ्त १५ हिजरी मुताबीक़ ६३६ ईस्वी में हज़रत अमीरुल मोमिनीन सैयदिना उमर फ़ारूक़ रदिअल्लहो तआला अन्हो के एहदे मुबारक से शुरू हुई. आपके बाद मुख़तलिफ वुफूदे इस्लाम आते रहे ओर तबलीग़े इस्लाम से लोगों को रुशनास करते रहे. इन में से कुछ तो चले गए ओर कुछ मुस्तक़िल क़याम करके यहीं रुक गए. उन लोगों ने यहाँ शादियां कीं. अब उनसे जो अवलाद पैदा हुई तो उनकी तालीम व तरबियत के लिए मदरसे क़ाइम किये गए.
      हज़रत ख़्वाजा
दाना साहब भी उलूम व फुनून के लिए एक दारुल उलूम अपनी ख़ान्क़ाह के क़रीब ही तामीर फरमाया था. जहां से हज़ारों तिश्न्गाने इल्म ने अपनी इल्मी प्यास को बुझाया ओर मुकम्मल तालीम हासिल करने के बाद इस्लाम ओर सिलसि-ल-ए नक्श्बंदियह कि जो खिदमात अन्जाम दीं वह सुनहरी हरफों से लिखने के क़ाबिल है. लेकिन अफ़सोस कि हालात ने कुछ ऐसी करवट ली कि हज़रत के विसाल के चंद सालों बाद ही मदरसा हालात की नज्र हो कर बंद हो गया.
      ११३३ हिजरी मुताबिक़ १७११ ईस्वी में अमानत खान मत्सदी सुरत ने दोबारह एक आलीशान मदरसा
हज़रत ख़्वाजा दाना साहब की ख़ान्क़ाह के इहाते में क़ाइम कीया बुलंद दरवाज़े से दाख़िल होने के बाद सीधे हाथ पर जो मेहराब नज़र आती है उसके ऊपर संगे मर्मर की तख्ती पर मदरसे की तारीख़ लिखी हुई है. तारीख़ ओर दोबारह तामीर करने के साल के दो बेत मन्दर्जा ज़ील हैं.

ख़ान्क़ाहे नक्शबंदियह जमालियह की तअमीर

     शहंशाहे सुरत हज़रत ख़्वाजा सैयद जमालुद्दीन दाना रहमतुल्लाह अलैह की सुरत आमद के चंद ही रोज़ के बाद शहंशाहे अकबर ने अज़रूए अक़ीदत एक लाख रुपे आप की ख़िदमत में बतौरे नज्र पेश कीया. हज़रत ने ख़ानक़ाह शरीफ की तामीर बड़े खान चकला महोल्ले में शुरू फरमादी दिनभर काम होता ओर रात में आप सब तोड़ देते. मुरीदीन व मो-त-किदीन ओर मज़दूरों ने वजह पुछी तो फरमाया "यह सब इस लिए कर रहा हूँ ताकि देर तक ग़ुरबा व मसाकीन की रोज़ी का ज़रिया क़ाइम रहे". हज़रत ख़्वाजा दाना साहब ने लोगों के लिए रुशदो हिदायत ओर तालीम व तरबियत ज़ाहिरी व बातिनी उलूम के लिए आप को वक्फ़ कर दिया था. साथ ही सिलसि-ल-ए नक्श्बंदियह को फरोग़ देने में एक अहम किरदार अदा फरमाया. गुजरात में आपकी ज़ाते गिरामी से सिलसि-ल-ए नक्श्बंदियह को परवान चढ़ाने में मदद मिली है.

बल्ख़ में आप की शादी मुबारक ओर हिन्दुस्तान में आपकी आमद

       बल्ख़ का बादशाह पीर मुहम्मद खान बिन जानी बेग आपका मुरीद ओर मो-त-किद था उसने अपनी रज़ाई बहन से आप की शादी करदी. काफी मुद्दत तक बल्ख़ में क़याम फरमाने के बाद अपनी शरीके हयात व मुरीदीन व मुतवस्सिलीन को लेकर बहुक्मे इलाही हिन्दुस्तान की जानिब रवाना हुए. हज़रात ख्वाजा दाना रहमतुल्लाह अलैह ने यह सफ़र समन्दर से शुरू कीया ओर ठठ के साहिल पर उतरे यहाँ कुछ दिन क़याम फरमाया.फिर आगरह तशरीफ़ लाये ओर मस्जिदे रहील में क़याम फरमाया.शेर शाह सोरी के बेटों ओर उमरा ने नज़रानए अक़ीदत पेश कीया. आगरह में कुछ रोज़ क़याम फरमाने के बाद यहाँ से आप बड़ोदा तशरीफ़ लाये.
        बड़ोदा में हज़रत मौलाना नज़ीर बदखशी आपकी ख़िदमत में हाज़िर हुए ओर नज़रानए अक़ीदत पेश करने के बाद दरख्वास्त की कि चंद दिन बड़ोदा में अपने मकान पर क़याम फरमाएं. यहाँ डाकुओं ने आपका सामान लूट लिया.
मो-त-किदीन हाज़िर हुए ओर डाकुओं को बुरा भला कहने लगे लेकिन आपने मुस्कुरा कर फरमाया. दोस्तो! अल्लाह का शुक्र है कि अमानत, अमानत वालों के पास पहुँच गयी. वोह सामान उन्हीं डाकुओं का था. कुछ दिनों के बाद आपने बड़ोदा को खैर आबाद कीया ओर बुरहान पूर तशरीफ़ ले गए वहाँ से फिर आप अपने मुस्तक़िल क़याम सुरत में तशरीफ़ लाकर पूरी ज़िन्दगी यहीं गुज़ार दी.

Sunday, May 29, 2011

इमाम अहमद रज़ा द्वारा कीया हुआ कुरान का अनुवाद ओर ग़लत अनुवाद इस्लाम के विरोधीयों का हथियार

      उत्तर प्रदेश के बरेली शहर के एक इज्ज़त वाले पठान खानदान में एक ऐसी हस्ती ने जन्म लिया जो अल्लाह तआला के दिए हुए इल्म और फ़ज़ल से इस्लामी जगत के क्षितिज पर चमकता सूरज बनकर छागया. ये थे अब्दुल मुस्तफा अहमद रज़ा खाँ जिन्हें दुनिया के मुसलामानों की अक्सरियत बीसवीं सदी के मुजद्दिद की हैसियत से अपना इमाम मानती है.
यूं तो इमाम अहमद रज़ा के इल्मी कारनामों की सूची काफी लम्बी है- दस हज़ार पन्नों पर आधारित अहम फतवों का संग्रह, एक हज़ार से ऊपर रिसाले ओर किताबें, इश्के रसूल में डूबी हुई शायरी-इत्यादि. लेकिन इनमें सबसे बड़ा इल्मी कारनामा है कुरान शरीफ का उर्दू अनुवाद. यह अनुवाद नहीं बल्कि अल्लाह तआला के कलाम की उर्दू में व्याख्या है.

मुफस्सिरीन का क़ौल है कि कुरान का ठीक ठीक अनुवाद किसी भी भाषा, यहाँ तक कि अरबी में भी नहीं  किया जा सकता. एक भाषा से दूसरी भाषा में केवल शब्दों को बदल देना मुश्किल नहीं है. लेकिन किसी भाषा की फ़साहत, बलाग़त, सादगी और उसके अन्दर छुपे अर्थ, उसके मुहावरों ओर दूसरे रहस्यों को समझाना, ओर उसकी पृष्ठभूमि का अध्ययन करके उसकी सही सही व्याख्या करना अत्यन्त कठिन काम है. यही आज तक कोई कर सका. रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम, जिन पर कुरान उतरा, जिसने अल्लाह के कलाम की तशरीह की ओर वह यही तशरीह थी जो सहाबए किराम, ताबईन, तबए-ताबईन ओर उलमा मुफ़स्सिरों ओर मुहद्दिसों से होती हुई हम तक पहुंची.

कुरान के दूसरी भाषाओं में जो अनुवाद हुए हैं उसके अध्ययन से यह बात साफ़ होजाती है कि किसी शब्द अनुवाद उसके मशहूर ओर प्रचलित अर्थ के अनुसार कर दिया गया है, जब कि हर भाषा में किसी भी शब्द के कई अर्थ होते हैं. इन मुख्तलिफ अर्थों में किसी एक अर्थ का चुनाव अनुवाद करने वाले की ज़िम्मेदारी होती है. वरना शब्द का ज़ाहिरी अनुवाद तो एक नौसीखिया भी कर सकता है.
इमाम अहमद रज़ा ने कुरान शरीफ का जो अनुवाद किया है उसे देखने के बाद जब हम दुनिया भर के कुरान अनुवादों पर नज़र डालते हैं तो यह वास्तविकता सामने आती है कि अक्सर अनुवादकों की नज़र कुरान के शब्दों की गहराई तक नहीं पहुंच सकी है ओर उनके अनुवाद से कुरान शरीफ का मफहूम ही बदल गया है. बल्कि कुछ अनुवादकों से तो जाने अनजाने अर्थात क़तर-व्योत भी हो गयी है. यह शब्द के ऊपर शब्द रखने के कारण कुरान की हुरमत ओर नबियों के सम्मान को भी ठेस पहुंची है. ओर इससे भी बढ़कर, अल्लाह तआला ने जिन चीज़ों को हलाल ठहराया है, इन अनुवादों के कारण वह हराम क़रार पा गई है. ओर इन्हीं अनुवादों से यह भी मालूम होता है कि मआज़ल्लाह कुछ कामों की जानकारी अल्लाह तआला को भी नहीं होती. इस क़िस्म का अनुवाद करके वो खुद भी गुमराह हुए ओर मुसलामानों के लिए गुमराही का रास्ता खोल दिया ओर यहूदियों, इसाईयों ओर हिन्दुओं के हाथों में (इस तरह का अनुवाद करके) इस्लाम विरोधी हथियार दे दिया गया. आर्य-समाजियों का काफी लिटरेचर इस्लाम पर केए गए तीखे तन्ज़ ओर कटाक्ष से भरा पड़ा है.
इमाम अहमद रज़ा ने मशहूर ओर मुस्तनद तफसीरों कि रौशनी में कुरान शरीफ का अनुवाद किया. जिस की व्याख्या मुफ़स्सिरों ने कई कई पन्नों में की, आला हज़रत ने अल्लाह तआला के प्रदान किये हुए ज्ञान से वही व्याख्या अनुवाद के एक वाक्य या एक शब्द में अदा कर दी. यही वजह है की आला हज़रत के अनुवाद से हर पढने वाले की निगाह में कुरान शरीफ का आदर, नबियों का सम्मान ओर इन्सानियत का वक़ार बुलंद होता है.

आइये देखें कि आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ओर दूसरे लोगों के कुरान-अनुवाद के बीच क्या अंतर है.

पारा तीस, सूरए वद-दुहा, आयत न.७
व व-ज-द-क दाल्लन फ-ह-दा
अनुवाद:
-मक़बूल शीआ: "ओर तुमको भटका हुआ पाया ओर मंज़िले मक़सूद तक पहुंचाया."
-शाह अब्दुल क़ादिर: "ओर पाया तुमको भटकता फिर राह दी."
-शाह रफीउद्दीन: "ओर पाया तुमको राह भूला हुआ पस राह दिखाई."
-शाह वलीउल्लाह: "व याफ्त तुरा राह गुम कर्दा यानी शरीअत नमी दानिस्ती पर राह नमूद."
-अब्दुल माजिद दरियाबादी देवबंदी: "ओर आप को बेख़बर पाया सो रास्ता बताया."
-देवबंदी डिप्टी नज़ीर अहमद: "ओर तुमको देखा कि राहे हक़ की तलाश में भटके भटके फिर रहे हो तो तुमको दीने इस्लाम का सीधा रास्ता दिखा दिया."
-अशरफ अली थानवी देवबंद: "ओर अल्लाह तआला ने आपको(शरीअत से) बेख़बर पाया सो आपको (शरीअत का) रास्ता बतला दिया."
-आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा: "ओर तुम्हें अपनी मुहब्बत में खुदरफ्ता पाया तो अपनी तरफ राह दी."

ऊपर की आयत में "दाल्लन" शब्द का इस्तेमाल हुआ है. इसके मशहूर मानी(अर्थ) गुमराही ओर भटकना है. चुनान्चे अनुवादकों ने आँख बंद करके यही अर्थ लगा दिए, यह न देखा कि अनुवाद में किसे राह-गुमकर्दा, भटकता, बेख़बर, राह भूला कहा जा रहा है. रसूले करीम सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम का आदर सम्मान बाक़ी रहता है या नहीं, इसकी कोई चिन्ता नहीं. एक तरफ तो है "मा वद्दअक रब्बुका वमा क़ला, वलल आखिरातो खैरुल लका मिनल ऊला" (यानी तुम्हें तुम्हारे रब ने न छोड़ा ओर न मकरूह जाना ओर बेशक पिछली तुम्हारे लिए पहली(घडी) से बेहतर है.....) इसके बाद ही शान वाले रसूल की गुमराही का वर्णन कैसे आ गया. आप खुद गौर करें, हुज़ूर सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम अगर किसी लम्हा गुमराह होते तो राह पर कौन होता था. यूँ कहिये की जो खुद गुमराह हो, भटकता फिरा हो, राह भूला हो, वह हिदायत देने वाला कैसे हो सकता है?
खुद कुरान शरीफ में साफ़ तौर से कहा गया है "मा दल्ला साहिबुकुम वमा ग़वा" (आपके साहिब अर्थात नबी करीम सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम न गुमराह हुए ओर न बेराह चले - पारा सत्ताईस, सूरए नज्म, आयत दो) जब एक स्थान पर अल्लाह तआला गुमराह ओर बेराह की नफी(नकारना) फरमा रहा है तो दूसरे स्थान पर खुद ही कैसे गुमराह इरशाद फरमाएगा? कुरान में विरोधाभास को स्थान ही नहीं.
कुरान शरीफ का ग़लत अनुवाद इस्लाम के विरोधीयों का हथियार
ये तो एक उदहारण है बाकी तो बेशुमार भूलें अन्य अनुवादकों ने की है किसी ने अन्जाने में तो किसी ने जान बूझकर (विरोधियों से माल वसूल करके) भी की है. ताकि लोगों को इस्लाम का विरोधी बनाया जा सके ओर इस्लाम को ग़लत पेश किया जा सके.

         
आतंकवाद को बढ़ावा देने के  लिए ये ग़लत अनुवाद वाले नुस्खों की भूमिका महत्व की है. दुनिया के आतंकवादी गुस्ताक़े(निंदक) रसूल हैं. ये लोग मुहम्मद सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम को सिर्फ एक एलची की तरह मानते हैं. इसलिए कुरान का जो अर्थ पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम ने लिया है वह नहीं लेते यह इनकी मन-मानी करते है ओर अपने मतलब का अर्थ निकालते हैं
      कुरान शरीफ का अनुवाद बिना हदीस के करना आतंकवादियों की बहुत बड़ी गुमराही है. एक उदाहरण देखें के कुरान शरीफ में जिहाद के सन्दर्भ में एक आयत आइ कि "तुम दीन के लिए लड़ो" इसका मतलब क्या यह हुआ है कि मुसलमान गैर-मुस्लिमों को मारना शुरू कर दे. कुरान की आयत बिना वजह नहीं उतरती थी कि कोई न कोई उसका कारण होता था.
जिहाद वाली आयातों का अर्थ क्या आज कल के आतंकवादियों को ही समझ में आया? २० या ३० वर्ष से पहले के मुसलामानों को क्या इन जिहाद वाली आयातों का अर्थ पता नहीं था? इन मुद्दों पर ग़ौर करना बहुत ज़रूरी है.
           अगर हम इन मुद्दों पर ग़ौर करेंगे तो खुद कहेंगे कि इस्लाम या कुरान आतंकवाद नहीं सिखाता बल्कि अमन का पैग़म देता है.